– (यह एक प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीक है जिसमें अंडे को शरीर के बाहर शुक्राणु द्वारा निषेचित किया जाता है और फिर भ्रूण को गर्भ में प्रत्यारोपित किया जाता है।)
3. आधुनिक मानव का जैव वैज्ञानिक नाम क्या है?
होमो सेपियन्स
4. डीएनए और आरएनए में कौन सी शर्करा पाई जाती है?
डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) में डिऑक्सीराइबोज शर्करा पाई जाती है, जबकि आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) में राइबोज शर्करा पाई जाती है।
5. परिवार नियोजन की विधि व लाभ बताइए?
परिवार नियोजन विधियाँ:
प्राकृतिक विधियाँ (रिदम विधि, बेसल बॉडी तापमान)
बैरियर विधियाँ (कंडोम, डायाफ्राम)
हार्मोनल विधियाँ (गोली, पैच, इंजेक्शन)
अस्थायी विधियाँ (ट्यूबल लिगेशन, वासेक्टोमी)
लाभ:
स्वास्थ्य लाभ
आर्थिक लाभ
शिक्षा और करियर के अवसर
परिवार की गुणवत्ता में सुधार
खंड – B (लघु उत्तरीय प्रश्न)
1. डीएनए और आरएनए में अंतर स्पष्ट कीजिए।
डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) और आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) दोनों ही न्यूक्लिक एसिड हैं जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। इनमें कुछ मुख्य अंतर हैं:
शर्करा: – डीएनए: इसमें डिऑक्सीराइबोज शर्करा पाई जाती है। – आरएनए: इसमें राइबोज शर्करा पाई जाती है।
नाइट्रोजनस बेस: – डीएनए: इसमें एडेनिन (A), गुआनिन (G), साइटोसिन (C), और थाइमिन (T) होते हैं। – आरएनए: इसमें एडेनिन (A), गुआनिन (G), साइटोसिन (C), और यूरेसिल (U) होते हैं (थाइमिन की जगह यूरेसिल होता है)।
संरचना: – डीएनए: यह आमतौर पर दोहरी हेलिक्स संरचना में पाया जाता है। – आरएनए: यह आमतौर पर एकल-तंतु संरचना में पाया जाता है, लेकिन यह विभिन्न आकारों में मोड़ सकता है।
कार्य: – डीएनए: यह आनुवंशिक जानकारी को संग्रहीत और संचारित करता है। – आरएनए: यह प्रोटीन संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आनुवंशिक जानकारी को डीएनए से राइबोसोम तक पहुंचाता है।
स्थिरता: – डीएनए: यह अधिक स्थिर होता है और लंबे समय तक जानकारी को संग्रहीत कर सकता है। – आरएनए: यह कम स्थिर होता है और आसानी से टूट सकता है।
2. चारग़ाफ़ का नियम लिखिए।
चार्गाफ़ का नियम (Chargaff’s Rule) बायोलॉजी में डीएनए की संरचना से संबंधित एक महत्वपूर्ण नियम है। यह नियम एडविन चार्गाफ़ द्वारा 1940 के दशक में प्रस्तुत किया गया था।
नाइट्रोजनस बेस की मात्रा: डीएनए में एडेनिन (A) की मात्रा थाइमिन (T) के बराबर होती है, और गुआनिन (G) की मात्रा साइटोसिन (C) के बराबर होती है। इसे इस प्रकार लिखा जा सकता है: – A = T – G = C
प्यूरिन और पाइरिमिडिन का अनुपात: डीएनए में प्यूरिन (एडेनिन और गुआनिन) की कुल मात्रा पाइरिमिडिन (थाइमिन और साइटोसिन) की कुल मात्रा के बराबर होती है। इसे इस प्रकार लिखा जा सकता है: – A + G = T + C
3. प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक कोशिकाओं में अंतर लिखिए।
प्रोकैरियोटिक और यूकेरियोटिक कोशिकाओं में अंतर:
प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं:
कोशिका संरचना: इनमें सच्चा केंद्रक नहीं होता, और कोशिकीय अंगक झिल्ली से घिरे नहीं होते।
आकार: ये आमतौर पर छोटे आकार की होती हैं।
उदाहरण: बैक्टीरिया और आर्किया।
कोशिका विभाजन: सरल द्विखंडन विधि से होता है।
यूकेरियोटिक कोशिकाएं:
कोशिका संरचना: इनमें सच्चा केंद्रक होता है, और कोशिकीय अंगक झिल्ली से घिरे होते हैं।
आकार: ये आमतौर पर बड़े आकार की होती हैं।
उदाहरण: पौधे, जानवर, कवक और प्रोटिस्ट।
कोशिका विभाजन: माइटोसिस और मियोसिस विधि से होता है।
4. वर्णांधता को स्पष्ट कीजिए।
वर्णांधता एक आनुवंशिक विकार है जिसमें रंगों को पहचानने में कठिनाई होती है, खासकर लाल और हरे रंग के बीच अंतर करना मुश्किल होता है। इसके कारण दैनिक जीवन में समस्याएं हो सकती हैं। वर्णांधता के लिए कोई पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन रंगीन चश्मे और तकनीकी उपकरण मदद कर सकते हैं।
5. RNA के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
आरएनए (राइबोन्यूक्लिक एसिड) के मुख्य तीन प्रकार हैं:
मैसेंजर आरएनए (mRNA): यह डीएनए से आनुवंशिक जानकारी को राइबोसोम तक पहुंचाता है, जहां प्रोटीन संश्लेषण होता है।
ट्रांसफर आरएनए (tRNA): यह अमीनो एसिड को राइबोसोम तक पहुंचाता है, जहां वे प्रोटीन श्रृंखला में जुड़ते हैं।
राइबोसोमल आरएनए (rRNA): यह राइबोसोम का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो प्रोटीन संश्लेषण में भूमिका निभाता है।
इन आरएनए के प्रकारों के अलावा, कुछ अन्य प्रकार के आरएनए भी होते हैं, जैसे कि:
स्नोआरएनए (snRNA): यह आरएनए स्प्लाइसिंग में भूमिका निभाता है।
माइक्रोआरएनए (miRNA): यह जीन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने में भूमिका निभाता है।
6. मेंडल के नियमों का उल्लेख कीजिए।
मेंडल के नियम:
प्रभुत्व का नियम (Law of Dominance): जब दो अलग-अलग लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण किया जाता है, तो पहले पीढ़ी (F1) में केवल एक लक्षण प्रकट होता है, जिसे प्रभुत्व कहा जाता है।
पृथक्करण का नियम (Law of Segregation): जब दो अलग-अलग लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण किया जाता है, तो दूसरे पीढ़ी (F2) में दोनों लक्षण अलग-अलग हो जाते हैं और उनके जीन अलग-अलग हो जाते हैं।
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment): जब दो या अधिक लक्षणों के लिए जीन अलग-अलग गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं, तो वे स्वतंत्र रूप से एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और उनकी विरासत एक दूसरे पर निर्भर नहीं करती है।
खंड – C (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
1. लैमार्कवाद का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
लैमार्कवाद एक जैविक सिद्धांत है जो जीन-बाह्य लक्षणों के वंशानुगत होने की बात करता है। इसका प्रतिपादन जीन-बैप्टिस्ट लैमार्क ने 1809 में किया था।
लैमार्कवाद के मुख्य बिंदु:
उपयोग और अनुपयोग: लैमार्क के अनुसार, जीव अपने वातावरण के अनुसार लक्षणों को विकसित करते हैं और उनका उपयोग करते हैं। यदि कोई लक्षण उपयोग नहीं किया जाता है, तो वह धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है।
अर्जित लक्षणों का वंशानुगत होना: लैमार्क का मानना था कि जीव अपने जीवनकाल में अर्जित किए गए लक्षणों को अपनी संतानों में स्थानांतरित कर सकते हैं।
उदाहरण:
एक प्रसिद्ध उदाहरण है जिराफ की लंबी गर्दन। लैमार्क के अनुसार, जिराफ की गर्दन इसलिए लंबी हुई क्योंकि वे पेड़ों की ऊंची पत्तियों को खाने के लिए अपनी गर्दन को लगातार ऊपर की ओर बढ़ाते थे। इस प्रकार, उन्होंने अपनी गर्दन को लंबा बनाने के लिए एक लक्षण अर्जित किया, जो उनकी संतानों में स्थानांतरित हो गया।
हालांकि, लैमार्कवाद को आधुनिक आनुवंशिकी द्वारा पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता है, क्योंकि यह वंशानुगत के आधुनिक सिद्धांतों के साथ पूरी तरह से संगत नहीं है।
1. लैमार्कवाद और डार्विनवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
लैमार्कवाद और डार्विनवाद दोनों ही जैविक विकास के सिद्धांत हैं, लेकिन इनमें कुछ मुख्य अंतर हैं:
लैमार्कवाद:
अर्जित लक्षणों का वंशानुगत होना: लैमार्क का मानना था कि जीव अपने जीवनकाल में अर्जित किए गए लक्षणों को अपनी संतानों में स्थानांतरित कर सकते हैं।
उपयोग और अनुपयोग: जीव अपने वातावरण के अनुसार लक्षणों को विकसित करते हैं और उनका उपयोग करते हैं।
डार्विनवाद:
प्राकृतिक चयन: डार्विन का मानना था कि जीवों की विविधता के कारण कुछ जीव अपने वातावरण में बेहतर ढंग से अनुकूलन कर पाते हैं और अधिक संतानों को जन्म देते हैं।
योग्यतम की उत्तरजीविता: जो जीव अपने वातावरण में सबसे अच्छी तरह से अनुकूलन कर पाते हैं, वे जीवित रहते हैं और अपनी संतानों को जन्म देते हैं।
मुख्य अंतर:
वंशानुगत के कारण: लैमार्कवाद में अर्जित लक्षणों का वंशानुगत होना बताया गया है, जबकि डार्विनवाद में प्राकृतिक चयन और योग्यतम की उत्तरजीविता को वंशानुगत के कारण के रूप में देखा जाता है।
विकास की प्रक्रिया: लैमार्कवाद में विकास की प्रक्रिया में जीवों के अपने प्रयासों को महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि डार्विनवाद में प्राकृतिक चयन को विकास की मुख्य प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।
2. DNA के वाटसन एवं क्रिक मॉडल का चित्रण वर्णन कीजिए।
डीएनए का मॉडल 1953 ई. में जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक ने प्रस्तुत किया था। उनके अनुसार डी.एन.ए. की संरचना इस प्रकार होती है —
डी.एन.ए. दो लंबी श्रृंखलाओं से मिलकर बना होता है, जो आपस में कुंडलित (Double Helix) रहती हैं।
यह संरचना एक मुड़ी हुई सीढ़ी (Twisted Ladder) जैसी दिखाई देती है।
प्रत्येक श्रृंखला में एक शर्करा (डिऑक्सी राइबोज़) और फॉस्फेट अणु क्रम से जुड़े होते हैं।
दोनों श्रृंखलाएँ नाइट्रोजन क्षारकों से जुड़ी होती हैं —
A (एडेनिन) हमेशा T (थाइमिन) से जुड़ता है।
G (ग्वानिन) हमेशा C (साइटोसिन) से जुड़ता है।
दोनों श्रृंखलाएँ विपरीत दिशा में होती हैं, जिसे एंटी-पैरेलल कहते हैं।
डी.एन.ए. की यही संरचना वंशानुगत गुणों के संचरण में मदद करती है।
👉 निष्कर्ष: वाटसन और क्रिक का यह मॉडल डी.एन.ए. की संरचना को स्पष्ट रूप से समझाने वाला सबसे प्रसिद्ध मॉडल है।
Class 12 Biology
अथवा
2 . ग्रिफिथ का प्रयोग का सचित्र वर्णन कीजिए।
फ्रेडरिक ग्रिफिथ का प्रयोग (1928 ई.) — सचित्र वर्णन:
ग्रिफिथ ने सबसे पहले Transformation (अनुवर्तन) की खोज की थी। उन्होंने यह प्रयोग निमोनिया उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया Streptococcus pneumoniae पर किया।
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