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Class 12 रसायन विज्ञान (Important Questions and Answers)

Class 12 रसायन विज्ञान

1. संकर्मण तत्व क्या है?

  • संकर्मण तत्व की परिभाषा:
    वे तत्व जिनकी d-कक्षिकाएँ (d-orbitals) आंशिक रूप से भरी होती हैं या जो आवर्त सारणी के s और p ब्लॉक के बीच पाए जाते हैं, उन्हें संकर्मण तत्व (Transition Elements) कहते हैं।

👉 ये तत्व d-ब्लॉक में आते हैं (समूह 3 से 12 तक)।

🧪 उदाहरण: Fe (लोहा), Cu (तांबा), Mn (मैंगनीज), Cr (क्रोमियम), Zn (जस्ता)।

Short में याद करें:
👉 “जो तत्व s और p ब्लॉक के बीच पाए जाते हैं और जिनकी d-कक्षिकाएँ अधूरी होती हैं, उन्हें संकर्मण तत्व कहते हैं।”

2. संक्रमण तत्व को “संक्रमण” (Transition) तत्व क्यों कहते हैं?

👉 क्योंकि ये तत्व आवर्त सारणी में s-ब्लॉक और p-ब्लॉक के बीच में पाए जाते हैं।
👉 ये तत्व रासायनिक गुणों में s-ब्लॉक और p-ब्लॉक के बीच संक्रमण (परिवर्तन) दिखाते हैं।
👉 इन तत्वों की d-कक्षिकाएँ अधूरी होती हैं, जिसके कारण इनका व्यवहार साधारण धातुओं से अलग और विशेष होता है।

🧪 उदाहरण: Fe (लोहा), Cu (तांबा), Mn (मैंगनीज), Zn (जस्ता)

📌 संक्षेप में:

“क्योंकि ये s-ब्लॉक और p-ब्लॉक के बीच स्थित होते हैं और दोनों के गुणों में परिवर्तन (Transition) दिखाते हैं, इसलिए इन्हें संक्रमण तत्व कहा जाता है।”

3. संक्रमण धातुओ के अभिलक्षण क्या है?

  • संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण (Characteristics of Transition Metals) 👇
    👉 संक्रमण धातुएँ वे होती हैं जिनकी d-कक्षिकाएँ आंशिक रूप से भरी होती हैं। इनके कुछ विशेष गुण होते हैं —

    🧪 1. विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Variable Oxidation States)
    संक्रमण धातुएँ कई ऑक्सीकरण अवस्थाओं में यौगिक बनाती हैं।
    जैसे — Fe²⁺ और Fe³⁺, Cu⁺ और Cu²⁺।

    🧪 2. रंगीन यौगिक बनाते हैं (Formation of Coloured Compounds)
    d-कक्षिकाओं में इलेक्ट्रॉनों के कारण इनके यौगिक रंगीन होते हैं।
    जैसे — CuSO₄ नीला, KMnO₄ गुलाबी-बैंगनी।

    🧪 3. उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं (Act as Catalyst)
    कई संक्रमण धातुएँ और उनके यौगिक उत्प्रेरक का कार्य करते हैं।
    जैसे — Fe अमोनिया के निर्माण में उत्प्रेरक होता है।

    🧪 4. चुंबकीय गुण (Magnetic Properties)
    d-कक्षिकाओं में अधूरे इलेक्ट्रॉनों के कारण ये प्रायः चुंबकीय गुण दिखाते हैं।
    जैसे — Fe, Co, Ni चुंबकीय धातुएँ हैं।

    🧪 5. जटिल यौगिक बनाना (Complex Formation)
    संक्रमण धातुएँ आसानी से जटिल यौगिक बनाती हैं।
    जैसे — [Fe(CN)₆]⁴⁻, [Cu(NH₃)₄]²⁺

    🧪 6. धात्विक गुण (Metallic Properties)
    ये सभी कठोर, तन्य (Malleable), लचीली (Ductile) और अच्छी विद्युत चालक होती हैं।

संक्षेप में (Short में याद करें):

संक्रमण धातुएँ विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दिखाती हैं, रंगीन यौगिक बनाती हैं, उत्प्रेरक का कार्य करती हैं, चुंबकीय गुण रखती हैं और जटिल यौगिक बनाने में सक्षम होती हैं।

4 .संक्रमण धातुएँ रंगीन यौगिक क्यों बनाती हैं? 👇

👉 संक्रमण धातुओं में d-कक्षिकाएँ (d-orbitals) अधूरी होती हैं। जब इन पर प्रकाश पड़ता है तो —

  1. d-कक्षिकाओं के इलेक्ट्रॉन ऊर्जा के विभिन्न स्तरों में स्थानांतरित (Transition) हो जाते हैं।
  2. इस प्रक्रिया में प्रकाश की कुछ विशेष तरंगदैर्घ्य (wavelength) अवशोषित (absorb) होती हैं।
  3. जो रंग परावर्तित (reflected) होता है — वही यौगिक का रंग दिखाई देता है।

🧪 उदाहरण:

  • CuSO₄ (कॉपर सल्फेट) → नीला रंग
  • KMnO₄ (पोटेशियम परमैंगनेट) → गुलाबी-बैंगनी रंग
  • Cr₂O₃ (क्रोमियम ऑक्साइड) → हरा रंग

संक्षेप में (Short में याद करें):

“संक्रमण धातुओं की d-कक्षिकाओं में इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण होने से प्रकाश की कुछ तरंगें अवशोषित होती हैं और शेष परावर्तित होने से यौगिक रंगीन दिखते हैं।”

5. संक्रमण धातुएँ उत्प्रेरक के रूप में कार्य क्यों करती हैं? 👇

👉 संक्रमण धातुओं में कुछ विशेष गुण होते हैं जो इन्हें अच्छे उत्प्रेरक (Catalyst) बनाते हैं —


🧪 1. d-कक्षिकाएँ आंशिक रूप से भरी होती हैं
  • इनके पास अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं।
  • ये इलेक्ट्रॉन रासायनिक अभिक्रियाओं में आसानी से दे या ले सकते हैं।
    👉 इससे अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है।

🧪 2. ऑक्सीकरण अवस्था बदलने की क्षमता
  • संक्रमण धातुएँ आसानी से अपनी ऑक्सीकरण अवस्था बदल सकती हैं (जैसे Fe²⁺ ⇄ Fe³⁺)।
    👉 इससे वे अभिक्रिया में भाग लेकर फिर से अपने मूल रूप में आ जाती हैं, यानी खत्म नहीं होतीं।

🧪 3. सक्रिय सतह (Active Surface)
  • संक्रमण धातुएँ ठोस अवस्था में सतह प्रदान करती हैं, जिस पर अभिकारक (Reactants) आकर अभिक्रिया करते हैं।
    👉 इससे प्रतिक्रिया की गति बहुत बढ़ जाती है।

🧪 4. जटिल यौगिक बनाने की क्षमता
  • ये तत्व अभिकारकों के साथ अस्थायी जटिल यौगिक बनाते हैं।
    👉 जिससे बंधन आसानी से टूटते हैं और नए बनते हैं।

🧪 उदाहरण:

  • Fe → अमोनिया निर्माण (Haber process) में उत्प्रेरक।
  • V₂O₅ → सल्फ्यूरिक अम्ल निर्माण (Contact process) में उत्प्रेरक।
  • Ni → हाइड्रोजनीकरण अभिक्रिया में उत्प्रेरक।

📌 संक्षेप में (Short में याद करें):

“संक्रमण धातुएँ उत्प्रेरक का कार्य इसलिए करती हैं क्योंकि उनमें इलेक्ट्रॉन देने-लेने की क्षमता होती है, ऑक्सीकरण अवस्था बदल सकती हैं और सक्रिय सतह प्रदान करती हैं।”

6. संक्रमण धातुएँ चुंबकीय गुण क्यों दिखाती हैं? 🧲👇

👉 संक्रमण धातुओं में d-कक्षिकाएँ अधूरी होती हैं, इसलिए इनमें कुछ इलेक्ट्रॉन अविवाहित (Unpaired Electrons) के रूप में रहते हैं।

👉 जब किसी पदार्थ में अविवाहित इलेक्ट्रॉन होते हैं —
तो वह चुंबकीय क्षेत्र में आकर्षित होता है।
इसी कारण संक्रमण धातुएँ चुंबकीय गुण प्रदर्शित करती हैं।


🧪 चुंबकीय गुणों के प्रकार:
  1. पैरामैग्नेटिक (Paramagnetic)
    • जिन तत्वों में अविवाहित इलेक्ट्रॉन होते हैं।
    • चुंबक की ओर हल्के से आकर्षित होते हैं।
    • उदाहरण: Fe, Mn, Cr, Cu²⁺ आदि।
  2. डायामैग्नेटिक (Diamagnetic)
    • जिनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं।
    • चुंबक से थोड़ा विकर्षण होता है।
    • उदाहरण: Zn, Cu⁺ आदि।

📌 संक्षेप में (Short में याद करें):

“संक्रमण धातुओं में d-कक्षिकाओं में अविवाहित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण वे चुंबकीय गुण दिखाती हैं।” ✅

🧲 उदाहरण: Fe, Mn, Cr → पैरामैग्नेटिक
Zn, Cu⁺ → डायामैग्नेटिक

7. संक्रमण धातुओं में अनुचुंबकीय (Diamagnetic) गुण क्यों होते हैं?

कारण:
  1. सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं
    • अगर किसी संक्रमण धातु या उसके यौगिक में d-कक्षिकाओं में कोई भी अविवाहित इलेक्ट्रॉन नहीं है, तो वह चुंबकीय क्षेत्र के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करता।
  2. चुंबकीय क्षेत्र से हल्का विकर्षण (Weak Repulsion)
    • ऐसी धातु या यौगिक चुंबक के प्रति थोड़ी विकर्षित होती है।
  3. उदाहरण:
    • Zn, Cd, Hg (धातुएँ)
    • Cu⁺, Ag⁺, Au⁺ (आयन)

📌 संक्षेप में (Short में याद करें):

“संक्रमण धातुओं में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने पर वे अनुचुंबकीय (Diamagnetic) हो जाती हैं।”

8. संक्रमण तत्व जटिल यौगिक (Complex Compounds) क्यों बनाते हैं? 🧪

कारण:
  1. अधूरी d-कक्षिकाएँ (Partially Filled d-Orbitals)
    • संक्रमण तत्वों में d-कक्षिकाएँ अधूरी होती हैं।
    • ये खाली या आधे भरे d-ऑर्बिटल्स लिगैंड (Ligand) के इलेक्ट्रॉन से जोड़ सकते हैं।
  2. लिगैंड के साथ अस्थायी बंधन बनाना (Formation of Coordinate Bonds)
    • लिगैंड अपने अद्वितीय जोड़े इलेक्ट्रॉनों (Lone Pair) को संक्रमण धातु के d-ऑर्बिटल्स के साथ जोड़ता है।
    • इस प्रक्रिया से जटिल यौगिक (Complex Compound) बनता है।
  3. ऑक्सीकरण अवस्था बदलने की क्षमता (Variable Oxidation States)
    • ये तत्व आसानी से अपनी ऑक्सीकरण अवस्था बदल सकते हैं।
    • इससे जटिल यौगिक अधिक स्थिर बनते हैं।
  4. रासायनिक स्थिरता (Chemical Stability)
    • जटिल यौगिक बनने से धातु आयन स्थिर हो जाता है और उसकी रासायनिक प्रतिक्रियाएँ नियंत्रित होती हैं।

🧪 उदाहरण:
  • [Fe(CN)₆]⁴⁻ (फेरिक साइनाइड)
  • [Cu(NH₃)₄]²⁺ (तांबे का टेट्राअमीन कॉम्प्लेक्स)
  • [Co(NH₃)₆]³⁺ (कोबाल्ट हेक्साअमीन कॉम्प्लेक्स)

📌 संक्षेप में (Short में याद रखें):

“संक्रमण तत्व अधूरी d-कक्षिकाओं और लिगैंड के lone pair के कारण जटिल यौगिक बनाते हैं।”

9. आन्तरिक संक्रमण तत्व (Inner Transition Elements) क्या हैं?

परिभाषा:

वे तत्व जो f-ब्लॉक में आते हैं और 3ᵣᵈ आवर्त (Lanthanides) तथा 4ᵗʰ आवर्त (Actinides) में पाए जाते हैं, उन्हें आन्तरिक संक्रमण तत्व कहते हैं।


विशेषताएँ:
  1. f-कक्षिकाएँ अधूरी होती हैं
    • इनके इलेक्ट्रॉनों का वितरण f-ऑर्बिटल में होता है।
  2. द्वितीय और तृतीय श्रेणी के संक्रमण धातु जैसे गुण
    • ये रंगीन यौगिक बनाते हैं।
    • विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाएँ दिखाते हैं।
  3. Lanthanides और Actinides दो प्रकार के होते हैं:
    • Lanthanides (लैंथेनाइड्स): La से Lu तक (3ᵣᵈ आवर्त)
    • Actinides (एक्टिनाइड्स): Ac से Lr तक (4ᵗʰ आवर्त)

उदाहरण:
  • Lanthanides: La, Ce, Pr, Nd, Sm, Eu, Gd, Tb, Dy, Ho, Er, Tm, Yb, Lu
  • Actinides: Th, Pa, U, Np, Pu, Am, Cm, Bk, Cf, Es, Fm, Md, No, Lr

📌 संक्षेप में (Short में याद रखें):

“जो f-ब्लॉक में आते हैं और जिनकी f-कक्षिकाएँ अधूरी होती हैं, उन्हें आन्तरिक संक्रमण तत्व कहते हैं।”

Subodh Kumar

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